हरदा (सार्थक जैन)
‘उन्नतीस धर्म की आखड़ी, हिरदै धरियो जोय।
जाम्भोजी किरपा करी, नाम बिश्नोई होय॥’
राजस्थान की स्थानीय भाषा में लिखी ये दो लाइनें कोई कविता या कहावत नहीं, बल्कि एक प्रण है। वो कसम, वो वायदा, वो संकल्प जिसे वहां के लोग जिंदगी कुर्बान कर के भी निभाते हैं। इन दो लाइनों का हिंदी अर्थ है- ‘जो लोग जंभेश्वर के 29 नियमों का ह्रदय से पालन करते हैं वे लोग ही बिश्नोई (bishnoi) हुए हैं।'
इन्हीं 29 सिद्धांतों में काले हिरण (Blackbuck) का भी नीयम है जिसे बिश्नोई समाज जान से भी ज्यादा चाहता हैं । इसी जीव रक्षा प्रण के चलते आज हरदा जिले के ग्राम अबगांव कला में घायल काले हिरण की जान बिश्नोई के युवक ईश्वर बिश्नोई ने बचाई। आज सुबह जब ईश्वर बिश्नोई अपने खेत पर गए तो उन्होंने एक घायल काले हिरण को अपने खेत पर देखा।ईश्वर ने तुरंत वन विभाग को इसकी सूचना दी जब तक वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची तब तक ईश्वर बिश्नोई ने घायल काले हिरण की देखभाल की।वन विभाग की टीम ने स्पॉट पर पहुंचकर घायल काले हिरण को रेस्क्यू किया। हिरण का इलाज करवाया जा रहा है। उक्त जानकारी सुहागमल पंवार नै दी।
उल्लेखनीय है कि बिश्नोई समुदाय के लिए यह जीव रक्षा का 550 साल पुराना रिश्ता है। बिश्नोई समुदाय, जिसकी स्थापना गुरु जम्भेश्वर (जिन्हें जंबाजी के नाम से भी जाना जाता है) ने 15वीं शताब्दी के आसपास की थी, जो 29 सिद्धांतों द्वारा निर्देशित है। उनकी शिक्षाएं वन्यजीवों और वनस्पतियों की सुरक्षा और संरक्षण पर जोर देती हैं। बिश्नोई दर्शन के मूल सिद्धांतों में से एक है काले हिरण की पूजा उनके आध्यात्मिक गुरु जम्भेश्वर के पुनर्जन्म के रूप में करना। "बिश्नोई कोई धर्म नहीं है, बल्कि गुरु जम्भेश्वर के 29 सिद्धांतों पर आधारित जीवन जीने का एक तरीका है, जिन्होंने 550 साल पहले बिश्नोई संप्रदाय की स्थापना की थी। सिद्धांतों में से एक पेड़ों और जानवरों की सुरक्षा की वकालत करता है। ब्रिटिशकाल में काले हिरणों का शिकार करने वाले अंग्रेजी अधिकारी का विरोध हरियाणा के शीशवाल गांव के बिश्नोई समाज के एक किसान तरोजी राहड़ ने किया। वह भूख हड़ताल पर बैठे और फिर इस शिकार पर रोक लगाई गई। यहां तक कि समाज के कई लोगों ने अपना बलिदान तक दे डाला। गुरु जम्भेश्वर जि की शिक्षाएं वन्यजीवों और वनस्पतियों की सुरक्षा और संरक्षण पर जोर देती हैं। बिश्नोई दर्शन के मूल सिद्धांतों में से एक है काले हिरण की पूजा उनके आध्यात्मिक गुरु जम्भेश्वर के पुनर्जन्म के रूप में करना।
ये हैं बिश्नोई समाज के 29 नियम
तीस दिन सूतक रखना।
पांच दिन ऋतुवन्ती स्त्री का गृहकार्य से पृथक रहना।
प्रतिदिन सवेरे स्नान करना।
शील का पालन करना व संतोष रखना।
बाह्य और आन्तरिक पवित्रता रखना।
द्विकाल संध्या-उपासना करना।
संध्या समय आरती और हरिगुण गाना।
निष्ठा और प्रेमपूर्वक हवन करना।
पानी, ईंधन और दूध को छान कर प्रयोग में लेना।
वाणी विचार कर बोलना।
क्षमा-दया धारण करना।
चोरी नहीं करनी।
निन्दा नहीं करनी।
झूठनझू हीं बोलना।
वाद-विवाद का त्याग करना।
अमावस्या का व्रत रखना।
विष्णु का भजन करना।
जीव दया पालणी।
हरा वृक्ष नहीं काटना।
काम, क्रोध आदि अजरों को वश में करना।
रसोई अपने हाथ से बनानी।
थाट अमर रखना।
बैल बधिया नहीं कराना।
अमल नहीं खाना।
तम्बाकू का सेवन नहीं करना।
भांग नहीं पीना।
मद्यपान नहीं करना।
मांस नहीं खाना।
नीला वस्त्र व नील का त्याग करना।
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