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राजस्व महाअभियान 3.0 टारगेट पर पटवारी : सर्वर की मार, पटवारी, किसान लाचार


मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 15 नवंबर 2024 से 15 दिसंबर 2024 तक चलाए जा रहे राजस्व महाभियान 3.0 को 20 दिन होने को है, लेकिन सालों से किसान और पटवारी जिस सर्वर के कारण दिन रात मोबाइल लैपटॉप लेकर परेशान हैं उसमें आज दिनांक तक कोई सुधार नहीं हुआ है। ऐसा नहीं है कि यह सर्वर की समस्या कोई पहली बार हुई है, बात दरअसल ये है कि राजस्व विभाग में पटवारी, सर्वर और एप डिजाइनर कंपनी की प्रयोगशाला है, जिस पर बिना जाने समझे सारे प्रयोग बेझिझक किए जाते हैं, मुझे नहीं लगता संसार के किसी भी प्रयोग में प्रयोगकर्ता और सैंपल के बीच इतनी दूरी होगी जितनी राजस्व सर्वर ऐप बनाने वालों और किसानों में है। 

बात चाहे वर्षों पुराने पी एम किसान पोर्टल की हो जिसके लिए 15 दिन में 20 से ज्यादा अपडेट जारी किए गए या एनआईसी की त्रुटियों की जिसमें आज भी सुधार चल रही है या वर्तमान में चल रही योजना फॉर्मर आईडी की। सबसे ताजा उदाहरण यदि फॉर्मर आईडी को देखा जाए तो इसे 18 जुलाई 2024 राजस्व महाभियान 2.0 के साथ शुरू किया गया था लेकिन आज दिनांक को लगभग 6 महीना बीत जाने के बाद भी आप दो चार घंटे में यदि एक आईडी बना लेते हैं तो इसे अपना सौभाग्य ही समझिए, अब जब हजारों की संख्या में और 100 प्रतिशत का टारगेट दिया जाए तो आप समझ सकते हैं कि यह कैसी असंभव बात होगी और इसके लिए यदि कोई यह तर्क दे कि भाई तुम नहीं कर रहे बाकी लोग कर रहे हैं तो भाई यदि लाखों की संख्या में 100-500 हो भी जा रहे हैं तो यह सर्वर की उपलब्धि नहीं वरन त्रुटि ही है। आज के समय जब किसान खेतों में अपनी जुताई बुआई में दिन रात व्यस्त है ऐसे में पटवारी जी सर्वेयर के पास तीन तीन घंटे अपनी आईडी जनरेट करने के लिए इंतजार कर रहा है और तीन तीन चार चार दिन से लोकसेवा और सीएससी सेंटर के चक्कर काट रहा है। 

ऐसे में बेचारे किसान की सारी झल्लाहट का एक मात्र शिकार फील्ड में बैठा पटवारी ही बनता है और यही समस्याएं लेकर जब पटवारी अपने अधिकारियों के पास जाता है तो ये समस्याएं कभी उन महानुभावों तक नहीं पहुंच पातीं जो इन समस्याओं के लिए जिम्मेदार है सर्वर और वेब साइट की लापरवाही का आलम यह है कि यदि किसी किसान का सम्मान निधि का पंजीयन 2 साल पहले भी किया गया है तब भी आज दिनांक तक उसके खाते में पैसे आने तो दूर आज तक उसकी पी एम किसान आईडी नहीं बन पाई है, और इन दो सालों में पटवारी कितने बार उस किसान को कैसे कैसे समझाता है कितनी बार हाथ पैर जोड़कर सी एम हेल्पलाइन कटवाता है यह तो बेचारा वही जानता है। जनता तो पटवारी को विलन मानती ही है हालांकि जनता की सारी बातें पटवारी अपनी नियति मानते हुए चुपचाप सह भी लेता है लेकिन हद तो तब होती है जब सरकार के मुखिया और अधिकारी अपने इन घटिया सर्वर की नाकामियों का दोष पटवारी पर खुले मंच से लगाते हैं और पटवारी को नकारा और कलेक्टर का बाप बोलकर चले जाते हैं। ये हमारी व्यथा का एक मूल कारण है जहां पटवारी दिन रात पूरी मेहनत से काम करते हुए भी प्रताड़ना झेलने पर विवश हैं, सभी पटवारियों और संघ को एक लड़ाई लड़ने मजबूर हैं तब ही पटवारी अपने ऊपर हो रहे शोषण को कम कर सकेंगे।

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