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MP हाईकोर्ट महत्वपूर्ण फैसला : मृत्युपूर्व बयान विश्वसनीय नहीं, हाईकोर्ट ने उम्रकैद की सजा रद्द की, हरदा जिले का मामला


जबलपुर‌
। हाईकोर्ट की युगलपीठ ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि मृत्युपूर्व बयान केवल तभी सजा का आधार हो सकता है, जब वह पूरी तरह विश्वसनीय हो। न्यायाधीश विवेक अग्रवाल और न्यायाधीश देवनारायण मिश्रा की युगलपीठ ने अपीलकर्ता बंटी सिंह को सत्र न्यायालय द्वारा सुनाई गई उम्रकैद की सजा को निरस्त करते हुए उसे दोषमुक्त कर दिया। 

हरदा निवासी बंटी सिंह पर आरोप था कि उसने अपने चचेरे भाई की पत्नी हर्षा सिंह को जलाकर हत्या कर दी। जुलाई 2012 में जलने के कारण हर्षा की मृत्यु हो गई थी। मृत्युपूर्व बयान में उसने बंटी पर अपने कमरे में घुसकर कैरोसिन डालकर आग लगाने का आरोप लगाया था। हालांकि, अपीलकर्ता ने कोर्ट में अपनी सफाई में बताया कि वह घटना के समय अलग रहता था और बिना सीढ़ी या कृत्रिम साधन के दूसरी मंजिल पर चढना संभव नहीं था। पुलिस जांच में भी घटनास्थल पर कैरोसिन नहीं मिला।

हाई कोर्ट ने पाया कि मृतिका के माता-पिता और पड़ोसियों ने दहेज प्रताड़ना या घरेलू कलह के कोई प्रमाण नहीं दिए। इसके अलावा, मृतिका के माता-पिता ने पुलिस में कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं करवाई। कोर्ट ने माना कि मृत्युपूर्व बयान विश्वसनीय नहीं था और अपीलकर्ता के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं थे। युगलपीठ ने आदेश देते हुए कहा कि मृत्युपूर्व बयान के आधार पर ही सजा देना उचित नहीं है, खासकर जब अन्य साक्ष्य घटना से मेल नहीं खाते। कोर्ट ने सत्र न्यायालय के फैसले को पलटते हुए बंटी सिंह को दोषमुक्त कर दिया।

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