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एमपी में चल रहा है अजब गजब तमाशा : कोर्ट, गाड़ी और सरकारी घर मांगा, बदले में मिली सजा...

  • नायब तहसीलदार को बनाया पटवारी, अब छिड़ेगी नई जंग
  • प्रधानमंत्री तक पहुंची थी शिकायत, हाईकोर्ट में याचिका
  • शासन  के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती देने की तैयारी

उज्जैन/आगर। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा नायब तहसीलदार अरुण चंद्रवंशी को डिमोशन कर वापस उज्जैन में पटवारी पदस्थ करने के मामले में नई कहानी सामने आई है। डिमोटेड किए गये नायब तहसीलदार  का दावा है कि उन्होंने अपने अधिकार के लिए आवाज उठाई थी। कोर्ट, गाड़ी और सरकारी घर के लिए हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी, बदले में सजा मिल गई। प्रधानमंत्री को भी शिकायत की थी। अब वे शासन के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती देंगे। मध्यप्रदेश शासन राजस्व विभाग के अवर सचिव राजेश कौल ने  11 फरवरी को एक आदेश जारी कर चंद्रवंशी को नायब तहसीलदार से पदावनत कर मूल पद पटवारी पर पदस्थ कर दिया है। इस कार्रवाई से पूरे मध्यप्रदेश में हलचल मची हुई है और मामला सुर्खियों में है। मामले में नया मोड़ सामने आया है। वह बड़ा रोचक है। 

दरअसल, चंद्रवंशी ने अपने हक के लिए लड़ाई लड़ी थी। उन्हें नायब तहसीलदार तो बना दिया गया था, लेकिन नायब तहसीलदार को दिए जाने वाले अधिकार के तहत कोर्ट नहीं दी, गाड़ी भी नहीं दी और सरकारी घर की सुविधा भी नहीं दी। नीमच जिले में आवास खाली होने पर भी नहीं मिला तो उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी जुटाई और इसके आधार पर प्रधानमंत्री को शिकायत कर हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी थी। मामले में कोर्ट ने शासन को सकारात्मकता के साथ श्री चंद्रवंशी के पक्ष में निर्णय करते हुए आदेश पारित करने का आर्डर दिया। जिस पर राज्य शासन ने 6 माह कर दिए, जिस पर दूसरी बार हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की , यह याचिका अभी विचाराधीन है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने भी एक पत्र 2020 में मुख्य सचिव को भेजा था। इसलिए चंद्रवंशी को पदावनत करने का मामला एक नया मोड़ लेता दिखाई दे रहा है। चंद्रवंशी ने कहा है कि वे शासन के आदेश के विरुद्ध हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे और न्याय मांगेंगे। इससे यह मामला अब एक नई कानूनी लड़ाई का रूप लेता दिखाई दे रहा।

गाड़ी नहीं फिर भी ड्यूटी मंदिर में लगा दी

पांच साल से चल रही लड़ाई

* चंद्रवंशी जब पांच साल पहले नीमच में पदस्थ थे तब से उनकी प्रशासन से लड़ाई चल रही है।

* फेसबुक पर कलेक्टर की एक टिप्पणी को लेकर उन्होंने शिकायत की थी।

* मामले में उनका वेतन रोक दिया गया था। इस पर उन्होंने एक अवमानना याचिका लगाई थी।

* नीमच जिले में आवास न मिलने पर राज्य सूचना आयोग को शिकायत की थी। आयोग ने कड़ा तेवर अपनाकर जानकारी देने को कहा था।

* सूचना के अधिकार में जानकारी मिली कि आवास खाली हैं फिर भी उन्हें नहीं दिया। 

* गाड़ी की सुविधा न देकर चंद्रवंशी की ड्यूटी एक दूरस्थ मंदिर में लगा दी थी। 

नायब तहसीलदार का जवाब - 

मैंने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को कलेक्टर अजय गंगवार और एडीएम विनय कुमार धोका के कारनामों के संबंध में केंद्र और राज्य शासन के 20 से ज्यादा विभागों में 49 पेज की शिकायत की थी। मेरे द्वारा की गई शिकायत के संबंध में प्रधानमंत्री कार्यालय से राज्य शासन के मुख्य सचिव को पत्र क्रमांक PMOPG/D/2020/001263 दिनांक 13.1.2020  पत्र भेज कर शिकायत  पर उचित कार्रवाई करने करने को पीएमओ ने मध्यप्रदेश शासन के मुख्य सचिव को लिखा था। प्रधानमंत्री कार्यालय का पत्र मुख्य सचिव के कार्यालय में नहीं मिला ऐसा मुख्य सचिव कार्यालय के लोक सूचना अधिकारी ने लिख कर जवाब  दिया। न्याय प्राप्त करने के लिए प्रत्येक नागरिक को कोर्ट जाने का अधिकार है। मैं भी न्यायालय गया न्यायालय में  याचिका क्रमांक 24517/2023 प्रस्तुत की। जिस पर  दिनांक 31.10.2023 को डिसीजन करते हुए माननीय न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता के सेवा लाभों के संबंध में 4 सप्ताह में समुचित आदेश पारित करें। शासन द्वारा हाईकोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया तब मैंने पुनः हाईकोर्ट में याचिका क्रमांक 1969/2024 प्रस्तुत की। जिस पर माननीय न्यायालय ने फिर‌ शासन के अधिकारियों को आदेश दिया कि चार सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता का सकारात्मक निराकरण करें और निराकरण नहीं करने की स्थिति में अवमानना का जोखिम आपको उठाना होगा। 

समयावधि बीतने के उपरांत मैंने डबल अवमानना याचिका क्रमांक 4705/2024 प्रस्तुत की। जिसमे मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन विभाग, प्रमुख सचिव राजस्व, नीमच जिले के दो डिप्टी कलेक्टर पक्षकार है‌। जिस पर मध्यप्रदेश शासन राजस्व विभाग  ने दुर्भावना पूर्वक मेरे डिमोशन का आदेश निकाला है। माननीय हाईकोर्ट के सख्त डिसीजन के बाद शासन ने सकारात्मक निराकरण करने की बजाय नकारात्मक निराकरण कर दिया है। जबकि अभी अवमानना याचिका 4705/2024 लंबित ही है। मुझे आवास खाली होने के बाद भी नहीं दिया गया। केवल 387 रूपये आवास भत्ता दिया जाता है। 387 में कौन सा मकान किराये पर मिलता है। मैं 8000 रूपये प्रतिमाह 10 महीने तक  किराये पर रहा मुझे यात्रा भत्ता नहीं दिया, परिवहन भत्ता नहीं दिया । उसे लेकर पिटीशन क्रमांक 3338 कोर्ट में लंबित है। एलएलबी होने के बाद भी मुझे नीमच में कोर्ट और गाड़ी की सुविधा भी नहीं दी गई थी।  

क्या है लोकायुक्त का मामला - 

डिमोटेड नायब तहसीलदार ने बताया कि राशन कार्ड मामले में जो  सोशल मीडिया पर शिकायत आदि चल रही है, वे झूठी चल रही है। वर्तमान में राशन कार्ड नहीं बनता है। पात्रता पर्ची बनती है। खाद्य नागरिक एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्रालय ने असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को पात्रता पर्ची जारी करने के आदेश एस 32/2013/29-1 दिनांक 22.7.2024 का आदेश जारी कर रखा है। जिसके बिंदु क्रमांक 5 के अनुसार  पात्रता पर्ची प्रदान करने के पूर्व समुचित परीक्षण किया जाता है। आवेदक के पास कितनी भूमि है यह रिपोर्ट राजस्व रिकार्ड के आधार पर पटवारी देते हैं। आवेदक को विकास योजनाओं का लाभ मिला है या नहीं यह जानकारी पंचायत सचिव , ग्राम रोजगार सहायक देते हैं। जनता के द्वारा चुने हुए  ग्राम पंचायत के सरपंच के भी साईन होते हैं।  आवेदक का स्वयं का शपथ पत्र लिया जाता है। पात्रता पर्ची अनुसूचित जाति, जनजाति, अल्पसंख्यक, असंगठित क्षेत्र के मजदूरों, संबल योजना के श्रमिकों को देने के आदेश है।  इसलिए राशन प्रदान करने के आदेश परीक्षण करा कर जारी किए हैं। इसी पत्र के बिंदु क्रमांक 8 में सतत मानिटरिंग करने के निर्देश है। इसलिए मानिटरींग एवं समीक्षा की समय सीमा 1 वर्ष की रखी है। अक्सर ऐसा होता है कि एक ही परिवार 20-20 सालों से गरीबी रेखा  का लाभ ले लेते हैं। उनके बड़े बड़े मकान होते हैं फिर भी वो लाभ ले लेते हैं और दूसरे का नंबर नहीं लगता। इसलिए ऐसा कोई नियम नहीं है कि पात्रता पर्ची परिवार को हमेशा के लिए दे दी जाए। पात्रता पर्ची का कोई दुरूपयोग न कर सके इसलिए  समय समय पर समीक्षा करने के आदेश शासन के ही हैं। इसलिए 1 वर्ष के लिए पात्रता पर्ची प्रदान करने के समीक्षा  आदेश दिए थे। साथ ही यह भी लिखा है कि प्रत्येक वर्ष में पात्रता पर्ची की समीक्षा की जाए । यदि परिवार का जीवन स्तर ऊपर उठ जाता है, जैसे कि वह पक्का मकान बना लें तो वह पात्रता से अपने आप ही बाहर हो जाता है। जो व्यक्ति भागीरथ देवडा  स्वयं द्वारा शिकायत करने पर कारवाई का दावा कर रहा है। वह झूठा दावा कर रहा है। सत्य यह है कि  भागीरथ देवडा  कुख्यात गुंडा रहा  है। वह गुंडागर्दी करके और अधिकारियों की शिकायत करके सरकारी जमीन अपने पक्षकार के नाम कराने आया था। उसकी बात मैंने नहीं मानी तो उसने मेरी असत्य  शिकायते लोकायुक्त में कर रखी है । जिस पर मैं उज्जैन लोकायुक्त को जवाब दे चुका हूं। भागीरथ देवडा के  खिलाफ आगर थाने में एफ आई आर‌ क्रमांक 125/2022 दर्ज है। इस मामले में आगर पुलिस ने गुंडे भागीरथ देवडा के खिलाफ चालान प्रस्तुत कर रखा है। आपराधिक मामला क्रमांक 1121/2022 जिला सत्र न्यायालय आगर में  प्रचलित है। गुंडे भागीरथ देवडा पर  तीन एफआईआर  क्रमांक 166/07, 165/09,  208/10 थाना सुसनेर में रही है। शाजापुर पुलिस अधीक्षक ने पत्र क्रमांक पु अ/ शाजा/ डीसीबी/ 48 ए/2011 दिनांक 19-4-11 में उसे गुंडा लिस्टेड भी किया है।  मैंने कार्यपालिक मजिस्ट्रेट रहते हुए गुंडे को जिलाबदर करने का प्रतिवेदन भेज रखा है, जिस पर पुलिस अधीक्षक आगर मालवा को कलेक्टर कार्यालय आगर मालवा से पत्र क्रमांक रीडर/2024/137 दिनांक 4-4-2024 भेजा गया है। जिसके कारण वो निराधार शिकायत करता रहता है। इस संबंध में माननीय हाईकोर्ट ने पुलिस अधीक्षक आगर मालवा को याचिका क्रमांक 12592/2024 में  गुंडे पर उचित कारवाई करने का आदेश दे रखा है। भागीरथ देवडा स्वयं को वकील बताता है। परंतु उसकी प्रावधिक सनद  नवंबर 2024 तक ही थी। वर्तमान में उसके खिलाफ प्रतिबंधात्मक कार्रवाई तहसीलदार आगर ने कर रखी है। यदि अभी भी वह वकालत कर रहा है तो यह एडवोकेट एक्ट की धारा 24 क का उल्लंघन है। जिसमे जेल भेजने के प्रावधान है।  भागीरथ देवडा के विरूद्ध अवमानना याचिका क्रमांक 3905 /2024 प्रचलित है। थाना प्रभारी ने पत्र क्रमांक 484/बी /2024 दिनांक 5.6.24 को जानकारी दी है कि गुंडे पर 107, 116 की कारवाई की गई है। बार काउंसिल आफ इंडिया और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश है कि वकालत के साथ पत्रकारिता नहीं कर सकते। यदि वह ऐसा कर रहा है तो एडवोकेट एक्ट की धारा 24 के अंतर्गत अपराध कर रहा है। पुलिस को उस पर एक्शन लेना चाहिए।

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