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चिरनिद्रा में लीन...नर्मदा की उत्ताल तरंगों के सारथी "उत्तम भैया"

हरदा (वरिष्ठ पत्रकार नवीन उपाध्याय की कलम से....) । आदरणीय उत्तम बंसल जी का निधन हरदा क्षेत्र की अपूर्णीय क्षति है... साहित्य सांस्कृति और पुरातात्व के वे प्रखर विद्वान थे... 90 के दशक में हरदा नेमावर क्षेत्र की ऐतिहासिक धरोहरों पर उन्होंने एक अनमोल कृति लिखी थी "सिद्धौत्मा नर्मदा"... उनकी इस पुस्तक के माध्यम से हरदा और उसके आसपास के ऐतिहासिक धरोहरों और उनके अनछुए पहलुओं पर बहुत सार्थक और सटीक जानकारी प्रकाश में आई ...!!! वे बाबूजी के प्रिय शिष्य थे और निर्मल भैया के सहपाठी... 90 के दशक में जब मैंने पत्रकारिता प्रारंभ की उस दौर में लंबे समय तक उनका सानिध्य मुझे प्राप्त रहा.. उनका स्नेह ऐसा जैसे पता नहीं कितने जन्मों का दुलार उनकी आंखों में समाया हो...!!!

हरदा और उसके आसपास की ऐतिहासिक पुरातात्विक धरोहरों पर उनके साथ बैठकर मैंने पता नहीं कितनी स्टोरी कवर की... नेमावर के  सिद्धनाथ और हंडिया के रिद्धनाथ मंदिरों में उनके साथ बैठकर पता नहीं कितनी बार प्रमाणिक विषयों पर सार्थक चर्चा हुई... और उसकी  परिणिति यह रही कि उनके इस सानिध्य से मेरे मार्फत वे खबरें सामने आई जिनकी की जानकारी शायद किसी को भी नहीं थी...!!! हरदा की साहित्य.. संस्कृति की सोंधी महक से इस क्षेत्र को गुलजार करने वाले और हरदा के नाम को देश-विदेश के मानचित्र में गौरांवित करने वाले अनेक जाने-माने मनीषी इस क्षेत्र में जन्मे... लेकिन हरदा में वे सदैव गुमनामी के साए में रहे... गंगा की तरह... जो निकलती तो पहाड़ों से है.. लेकिन जिसके आवदान से मैदान समृद्ध हैं..और पहाड़ वंचित...!!! ऐसा क्यों है...? इस सवाल का जवाब मैं खुद भी नहीं तलाश पाया..

साहित्य संस्कृति और कला की विविध प्रतिभाओं के योगदान को संरक्षित करने के लिए और नगर की साहित्यिक-सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजने के लिए वर्षों पहले यहां एक कम्युनिटी हॉल को विकसित करने की योजना भी बनी थी... ताकि नगर की साहित्य संस्कृति की फिजा सदैव हरदा के नाम के अनुरूप दमकती- महकती रहे... गोपाल दास नीरज, ओम प्रकाश आदित्य, बालकवि बैरागी, बेकल उत्साही, संतोष आनंद, आत्म प्रकाश शुक्ला, सोम ठाकुर, अशोक चक्रधर, काका हाथरसी जैसे विद्वान मनीषी जब माणिक वर्मा जी "दादा" के आवास पर हरदा आते थे... तब हरदा की सांस्कृति और साहित्यिक गतिविधियों पर बड़ी भावनात्मक चर्चा होती थी... हरदा की उस तासीर को  किसकी नजर लग गई..?

वक्त के बदलते साज़ कभी-कभी क्रोध और लय की धार अपने तराने छेड़ा करती है...बहरहाल इतिहास विध्वंश और सृजन के हर पन्नों को  हमेशा अपने आगोश में समेटे रहता है...आईने की तरह जो हर तस्वीर को दिखाने में सदैव समर्थ होता है...!!!आदरणीय उत्तम भैया के असमय निधन ने मन को बहुत भावुक और अशांत कर दिया ...!!!आज नर्मदा की विशाल पावन लहरों में उसके आसपास के वैभवशाली समृद्ध अतीत और पुरातात्विक संपदा के किस्सों की रोमांचक गाथा सुनाने वाली वाणी चिरनिंद्रा में लीन होकर अनंत यात्रा पर निकल चुकी है...!!!प्रभु दिवंगत आत्मा को मोक्ष प्रदान करें और वेदना किन क्षणों में परिजनों को संबल और सामर्थ प्रदान करें...!!!शत शत नमन विनम्र श्रद्धांजलि भैया...!!! 

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